Tuesday 22 November 2016

ਇਸ਼ਕ ਵੀ ਕੀਤਾ.. ਸੱਟਾਂ ਵੀ ਖਾਦੀਆਂ ਪਰ ….ਆਪਣਾ ਬਣਾਉਣ ਵਾਲਾ ਕੋਈ ਮਿਲਿਆ ਨੀ ..ਰੋ-ਰੋ ਸੁਣਾਇਆ .. ਦਰਦ ਏ ਦਿਲ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਪਰ ਕੋਈ ਕਦਰ ਪਾਉਣ ਵਾਲਾ ਮਿਲਿਆ ਨੀ


वो मुहब्बत भी उसकी थी वो नफरत भी उसकी थी , वो अपनाने और ठुकराने की अदा भी उसकी थी ! मैं अपनी वफा का इन्साफ किस से मांगता , वो शहर भी उसका था वो अदालत भी उसकी थी !

ना वो आ सके, ना हम कभी जा सके, ना दर्द दिल का किसी को सुना सके, बस खामोश बैठे हैं उनकी यादों में, ना उसने याद किया ना हम उसे भुला सके..

Kismat Ne Jaise Chaha Waise Dhal Gaye Hum, Bahut Sambhal Kar Chaley Phir Bhi Phisal Gaye Hum!! Kisi Ne Yakeen Thoda To Kabhi Kisi Ne Dil, Aur Logon Ko Lagata Ki Badal Gaye Hum!!

क़यामत के रोज़ फ़रिश्तों ने जब माँगा उससे ज़िन्दगी का हिसाब, ख़ुदा, खुद मुस्कुरा के बोला, जाने दो, ‘मोहब्बत’ की है इसने...!

हमें भी शौक था दरिया -ऐ इश्क में तैरने का, एक शख्स ने ऐसा डुबाया कि अभी तक किनारा न मिला...